Rumored Buzz on Shodashi

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The murti, which can be also found by devotees as ‘Maa Kali’ presides about the temple, and stands in its sanctum sanctorum.  Below, she is worshipped in her incarnation as ‘Shoroshi’, a derivation of Shodashi.

The worship of these deities follows a certain sequence often called Kaadi, Hadi, and Saadi, with Each and every goddess linked to a selected approach to devotion and spiritual follow.

हस्ते पङ्केरुहाभे सरससरसिजं बिभ्रती लोकमाता

ह्रीं‍मन्त्रान्तैस्त्रिकूटैः स्थिरतरमतिभिर्धार्यमाणां ज्वलन्तीं

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥४॥

चक्रेऽन्तर्दश-कोणकेऽति-विमले नाम्ना च रक्षा-करे ।

षोडशी महात्रिपुर सुन्दरी का जो स्वरूप है, वह अत्यन्त ही गूढ़मय है। जिस महामुद्रा में भगवान शिव की नाभि से निकले कमल दल पर विराजमान हैं, वे मुद्राएं उनकी कलाओं को प्रदर्शित करती हैं और जिससे उनके कार्यों की और उनकी अपने भक्तों के प्रति जो भावना है, उसका सूक्ष्म विवेचन स्पष्ट होता है।

Shodashi Goddess has become the dasa Mahavidyas – the 10 goddesses of wisdom. Her identify signifies that she could be the goddess who is usually 16 decades outdated. Origin of Goddess Shodashi takes place following Shiva burning Kamdev into ashes for disturbing his meditation.

या देवी दृष्टिपातैः पुनरपि मदनं जीवयामास सद्यः

Her magnificence is usually a gateway to spiritual awakening, generating her an item of meditation and veneration for the people searching for to transcend worldly desires.

यह देवी अत्यंत सुन्दर रूप वाली सोलह वर्षीय here युवती के रूप में विद्यमान हैं। जो तीनों लोकों (स्वर्ग, पाताल तथा पृथ्वी) में सर्वाधिक सुन्दर, मनोहर, चिर यौवन वाली हैं। जो आज भी यौवनावस्था धारण किये हुए है, तथा सोलह कला से पूर्ण सम्पन्न है। सोलह अंक जोकि पूर्णतः का प्रतीक है। सोलह की संख्या में प्रत्येक तत्व पूर्ण माना जाता हैं।

यस्याः शक्तिप्ररोहादविरलममृतं विन्दते योगिवृन्दं

Just after slipping, this Yoni over the Hill, it transformed right into a stone for the good thing about human being but it is explained that also secretion of blood prevails periodically as if Goddess menstruates.

साम्राज्ञी सा मदीया मदगजगमना दीर्घमायुस्तनोतु ॥४॥

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